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भूमि का बटांकन क्या होता है
किसी भी ज़मीन के किसी भी खसरे के टुकड़े होने पर उसका अंकन राजस्व विभाग के रिकॉर्ड व नक्शे में किये जाने को बटांकन कहते हैं . खसरे का यह टुकड़ा आपसी बंटवारे , वसीयत , दान , फौती , ज़मीन के किसी खसरे के हिस्से में अलग अलग मालिकियत या नाम होने से , किसी खसरे का एक हिस्सा बेचने से भी बटांकन कराना आवश्यक होता है .
बटांकन क्यों आवश्यक हो गया है
पूर्व में ज़मीन की रजिस्ट्रियां बिना बटांकन के हो जाती थीं . और किसी भी खसर के टुकड़े होने पर केवल उस टुकड़े का नंबर खसरे के नये टुकड़े के रूप में बदल दिया जाता था . इसके कारण जब मौके पर उक्त खसरे की ज़मीन बड़ी या छोटी या राजस्व रिकॉर्ड से अलग शेप की होती थी तब भूमि स्वामी को अपनी ज़मीन की सही स्थिति व नाप नहीं मिल पा रहा था. अनेक बार पूर्व भूमि स्वामी के द्वारा मौके पर केवल स्थल दिखाकर व पटवारी के द्वारा खसरे नक्शे में कीवल लाल रंग से टुकड़ा अंकित कर रजिस्ट्री की गई जोकि बाद में नाप के समय उक्त खसरा धारियों के लिये विवाद का कारण बना . ठीक से खसरे व नक्शे में बटांकन नहीं होने से पूरे देश में लाखों राजस्व प्रकरणों का निराकरण नहीं निकल पा रहा है . छत्तीसगढ़ में भी ऐसे लाखों प्रकरण हैं . इसलिये छ.ग. सरकार ने आगे से ज़मीनों के बटांकन को अनिवार्य कर दिया है. वैसे किसी के पास पूर्व में खाले ज़मीन है व चारों तरफ भी खाली ज़मीन है ( बिना प्लॉटिंग की ) तो उस भू-स्वामी को बटांकन अवश्य करवा लेना चाहिये ताकि आगे कभी भी विवाद की स्थिति ना बने
पहले तक पटवारी जमीन की खरीदी बिक्री के मूल नक्शे में स्याही से मार्क कर चौहद्दी दर्शा देते थे, इसके आधार पर पंजीयन कर लिया जाता था। जमीन की पहचान के लिए पंजीयन में मूल खसरे के साथ टुकड़ा लिख दिया जाता था। इससे मूल नक्शे में जमीन चिन्हित नहीं हो पाता था। बाद में सुविधा अनुसार बटांकन करा लिया जाता था।
जहां पहले से ही प्लाटिंग हो चुकी है, ऐसे अधिकतर जगहों के नक्शे पर अब भी बटांकन दर्ज नहीं हो पाया है। पटवारियों की मानें तो ऐसे प्लाटों के एक से अधिक बार खरीदी बिक्री की आशंका होती है, क्योंकि पूर्व की सभी जानकारियां हमारे पास नहीं होती है, वहीं पूर्व की जानकारियां खोजना भी बड़ी मुसीबत है।
राजस्व विभाग के एक अधिकारी के अनुसार लैंड रिकॉर्ड में बटांकन के हिसाब से सुधार के लिए बेहद बारीकी से काम की जरूरत है। नक्शे के मौजूदा पैमाने पर यह संभव नहीं है। इसके लिए नक्शे बड़ी साइज़ पर तैयार करने पड़ेंगे। वहीं दूसरी ओर सरकार ने कम्प्यूटर और दूसरे संसाधन उपलब्ध करने के बाद भी लगातार काम करने पर बटांकन सही ढंग से हो पायेगा . इस सब के बावजूड पुराने राज्स्व में लंबित विवादों का निपटारा हुए बिना उन खसरों का बटांकन संभव नहीं हो पायेगा .
खसरा सम्मिलन क्या है ? क्यों ज़रूरी हो गया है खसरा सम्मिलन
एक ही क्षेत्र में ,एक ही व्यक्ति के नाम से एक ही खसरे के कई टुकड़ों या अलग अलग लगे हुए खसरों को मिलाकर एक खसरा के रूप में राजस्व रिकॉर्द में अंकित करने को खसरा सम्मिलन कहते हैं . विशेषतः पूर्व में बसी कई कॉलोनियों के ले-आउट अनेक खसरों को मिलाकर बने हुए थे , अब हर रजिस्ट्री , बैंक के काम या अन्य कामों में इतने सारे खसरों का उल्लेख करना बेहद जटिल कार्य हो जाता है , इसलिये उन खसरों के सम्मिलन के लिये ज़मीन मैल्कों तथा शासन दोनो द्वारा पहल आवश्यक हो गयी है .
छत्तीसगढ- में स्थित किसी भी ज़मीन का नक्शा , खसरा खतौनी देखने के लिये सरकारी साइट ‘ भुइयां’ का लिंक है :
https://bhuiyan.cg.nic.in/User/Selection_Report_For_KhasraDetail.aspx
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